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July 25, 2025

अगर अपराध व्यक्तिगत प्रकृति का हो, तो उसे समाप्त किया जा सकता है।


 

हाईकोर्ट का फैसला: आपसी समझौते पर FIR रद्द
⚖️ हाईकोर्ट का फैसला: आपसी समझौते पर FIR रद्द
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498A, 377 और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धाराओं के तहत दर्ज FIR को रद्द कर दिया क्योंकि पति-पत्नी में आपसी समझौता हो गया था और उन्होंने आपसी सहमति से तलाक ले लिया था।
📁 मामला क्या था?
- शिकायतकर्ता पत्नी ने पति और उसके परिवार वालों पर दहेज, अप्राकृतिक यौन संबंध और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
- FIR संख्या: 737/2023
- धारा: 498A, 377 IPC, 3/4 Dowry Act
🤝 आपसी समझौता क्यों हुआ?
दोनों पक्षों ने Family Court में तलाक के लिए सहमति दी और एक समझौते के तहत सभी आरोपों को खत्म करने पर सहमति जताई।
🧑‍⚖️ कोर्ट का क्या निर्णय था?
- पत्नी खुद कोर्ट में उपस्थित हुई और कहा कि उसे FIR खत्म करने में कोई आपत्ति नहीं।
- कोर्ट ने कहा कि यदि विवाद सुलझ गया है, तो Section 482 CrPC के तहत केस को खत्म किया जा सकता है।
📚 सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
- Gian Singh v. State of Punjab (2012)
- B.S. Joshi v. State of Haryana (2003)
- Narinder Singh v. State of Punjab (2014)
इन सभी में बताया गया कि आपसी समझौते के मामलों में, अगर अपराध व्यक्तिगत प्रकृति का हो, तो उसे समाप्त किया जा सकता है।
📝 निष्कर्ष
यह निर्णय बताता है कि यदि पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग हो जाते हैं और विवाद समाप्त हो चुका हो, तो हाईकोर्ट को मुकदमा खत्म करने की अनुमति है। इससे दोनों पक्ष अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
June 23, 2025

"क्या कोई कार्य बिना किसी की अनुमति के करना अपराध है?"

 



BNS Section 30 – बिना सहमति के भलाई के लिए किया गया कार्य




धारा 30 (BNS) कहती है कि –


अगर कोई कार्य किसी व्यक्ति के हित (Benefit) के लिए सच्ची नीयत (Good Faith) से किया गया है, और उस समय उसकी सहमति लेना संभव नहीं था, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा।


उदाहरण के लिए –

अगर कोई डॉक्टर बेहोश मरीज का इलाज बिना उसकी अनुमति के करता है, तो यह अपराध नहीं है।



🟡  किन शर्तों पर छूट मिलेगी? 


📌 यह छूट तभी मिलेगी जब:


1. कार्य सद्भावना में किया गया हो



2. उस समय सहमति लेना संभव नहीं था



3. व्यक्ति सहमति देने में अक्षम हो



4. उसका कोई अभिभावक या संरक्षक भी उपलब्ध न हो






🟡 किन मामलों में यह छूट नहीं मिलेगी? 


🚫 इस धारा के दो अपवाद (Exceptions) हैं –


1. अगर कार्य जानबूझकर किसी की मौत का कारण बनता है



2. अगर करने वाला जानता है कि इससे गंभीर हानि हो सकती है फिर भी करता है




यानि, Good Faith का मतलब यह नहीं कि आप कोई भी खतरा उठा सकते हैं।



🟡  न्यायशास्त्रीय विश्लेषण 


⚖️ यह धारा दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित है:


1. Mens Rea – यानी दोषपूर्ण मंशा नहीं है



2. Necessity Doctrine – यानी स्थिति की आवश्यकता थी




यह बताता है कि कभी-कभी कानून नीयत (Intent) और परिस्थिति (Circumstance) को देखकर छूट देता है।




🟡  निष्कर्ष और सलाह 


📚 धारा 30 हमें सिखाती है कि अगर हम किसी की भलाई के लिए ईमानदारी से कोई कार्य करें, और उसे नुकसान पहुंचाने की मंशा न हो, तो कानून उसे अपराध नही मानता।


लेकिन ध्यान रखें – सद्भावना का मतलब है – समझदारी और सावधानी के साथ काम करना।

June 05, 2025

"निजी हो या सरकारी, ट्रस्ट तोड़ा तो अपराध! | Section 316 (BNS)

"Criminal breach of trust"
 "आपराधिक न्यास भंग" 



🔸🔹 धारा 316 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 : आपराधिक न्यास भंग (Criminal Breach of Trust)


जिसका आशय है – यदि किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति पर विश्वासपूर्वक नियंत्रण (entrusted) दिया गया हो और वह उस विश्वास का उल्लंघन कर संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है।



🔹 महत्वपूर्ण बिंदु (Key Ingredients):


1. विश्वास में संपत्ति सौंपी गई हो (Entrustment of property)



2. बेईमानी से उस संपत्ति का दुरुपयोग या गबन किया गया हो (Dishonest misappropriation or use)



3. कानूनी दायित्व या अनुबंध की अवहेलना की गई हो (Violation of trust or contract)



4. जान-बूझकर स्वयं या किसी अन्य को ऐसा करने देना (Wilful act or negligence)






🔹 Explanation 1 का अर्थ 


> यदि कोई नियोक्ता कर्मचारी की वेतन से पीएफ (Provident Fund) या फैमिली पेंशन फंड के लिए राशि काटता है और वह उस राशि को संबंधित फंड में जमा करने में विफल रहता है, तो इसे भी "आपराधिक न्यास भंग" माना जाएगा, भले ही वह संस्था किसी प्रकार से छूट प्राप्त हो।




भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 316 (Section 316 – Criminal Breach of Trust) की Sub-section (1) से (5) 



✅  Sub-section (1) 


जो कोई किसी संपत्ति पर किसी भी प्रकार से विश्वासपूर्वक सौंपा गया हो, और वह उस संपत्ति का:


बेईमानी से गबन करता है,


या अपने व्यक्तिगत उपयोग में लेता है,


या कानून या अनुबंध के विरुद्ध उसका उपयोग या हेरफेर करता है,



तो वह व्यक्ति आपराधिक न्यास भंग (Criminal Breach of Trust) का दोषी होता है।




✅ Sub-section (2) 


> यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) में वर्णित अपराध करता है, तो उसे 10 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।



📝 सरल भाषा में:

अगर कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करता है तो उसे 10 साल तक की कैद और साथ में जुर्माना हो सकता है।





✅ Sub-section (3) 


> यदि कोई व्यक्ति जो किसी संस्था या न्यास (trust) के प्रबंधन से जुड़ा है, और वह:




संस्था या ट्रस्ट की संपत्ति का दुरुपयोग करता है,


या गलत तरीके से उसका इस्तेमाल करता है,



तो उसे भी उपधारा (2) की तरह 10 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।





✅ Sub-section (4) 


> यदि यह अपराध किसी सार्वजनिक सेवक (Public Servant) द्वारा किया गया है, और उस संपत्ति का संबंध:




सरकार के धन से है,


या किसी योजना या निधि से है,



तो उसे 10 साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जाएगा, और सजा कठोर कारावास (rigorous imprisonment) हो सकती है।





✅ Sub-section (5) 


> यह धारा लागू होती है, चाहे अपराध करने वाला व्यक्ति सरकारी कर्मचारी हो या न हो।




📝 मतलब:

यह कानून सभी व्यक्तियों पर लागू होता है — सरकारी और गैर-सरकारी, दोनों।



---


📌 संक्षेप में (In Short):


उपधारा मुख्य बात सजा


(1) विश्वास भंग कर संपत्ति का दुरुपयोग अपराध सिद्ध

Explanation 1 PF/पेंशन फंड ना जमा करना भी अपराध अपराध सिद्ध

(2) कोई भी व्यक्ति 10 वर्ष + जुर्माना

(3) ट्रस्ट या संस्था से जुड़ा व्यक्ति 10 वर्ष + जुर्माना

(4) सार्वजनिक सेवक (Public Servant) 10 वर्ष तक कठोर कारावास + जुर्माना

(5) सभी पर लागू – सरकारी या निजी लागू होता है



June 05, 2025

"Risk लेना भी कानूनन मंजूर है!

  


जब कोई बालिग व्यक्ति खुद खतरा स्वीकार करके किसी कार्य के लिए सहमति देता है, और उस कार्य से अनजाने में नुकसान होता है, तो वह कानूनन अपराध नहीं माना जाता — बशर्ते न तो इरादा था और न ही संभावना थी कि गंभीर हानि या मृत्यु होगी।   भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 25 (Section 25)




धारा 25: ऐसा कार्य जो मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने के लिए न किया गया हो और न ही ऐसा होने की संभावना हो, और जो सहमति से किया गया हो।


स्पष्टीकरण:


अगर कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिसका उद्देश्य न तो किसी की मृत्यु करना है और न ही गंभीर चोट पहुँचाना है, और जिसे करने वाले को यह पता भी नहीं है कि इससे किसी की मृत्यु या गंभीर चोट हो सकती है —



⚡और वह कार्य किसी ऐसे व्यक्ति पर किया गया है:



⚡जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है,



⚡जिसने स्वयं उस कार्य को करने की सहमति दी है (चाहे स्पष्ट रूप से या इशारे में),



⚡और उसने उस हानि का जोखिम स्वयं स्वीकार किया है —



⚡तो ऐसी स्थिति में कोई अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही उस कार्य से कुछ हानि हो गई हो।



 निम्न परिस्थितियों में Section 25 के अंतर्गत आपराधिक नहीं होगा 


1. A और Z आपसी मनोरंजन के लिए तलवारबाज़ी (fencing) करने पर सहमत होते हैं।


इस समझौते में दोनों इस बात पर सहमत होते हैं कि खेल के दौरान अगर कोई सामान्य चोट लगती है तो वे उसे स्वीकार करेंगे।


यदि A ईमानदारी से खेलते हुए Z को चोट पहुँचा देता है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।


कुछ अन्य परिस्थितियां जैसे

2. खेल प्रतियोगिता


3. जिम ट्रेनिंग


4. मार्शल आर्ट्स क्लास


5. डांस रिहर्सल


5. सर्कस या स्टंट शो


June 03, 2025

"अगर जबरन पिलाई शराब में हो गया अपराध? | Section 23 BNS Explained"





 "अगर कोई व्यक्ति नशे की हालत में ऐसा कार्य करता है, जो सामान्यतः अपराध होता है, लेकिन उस समय वह व्यक्ति यह नहीं समझ पा रहा था कि वह क्या कर रहा है या जो कर रहा है वह कानून के खिलाफ है — और यह नशा उसे बिना उसकी जानकारी के या उसकी इच्छा के विरुद्ध दिया गया था —

तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।"




मुख्य बातें:


1. यह धारा बिना मर्जी से कराए गए नशे की स्थिति में लागू होती है।



2. यदि कोई व्यक्ति नशे की वजह से यह नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है, और यह नशा उसे जबरदस्ती या धोखे से दिया गया था —

तो वह कानूनी रूप से ज़िम्मेदार नहीं माना जाएगा।



3. लेकिन अगर किसी ने स्वेच्छा से नशा किया है, तब यह धारा लागू नहीं होगी।




उदाहरण:


⚡अगर किसी को पार्टी में चुपचाप शराब पिलाई जाती है और वह व्यक्ति नशे में किसी को मार देता है,

⚡तो कोर्ट देखेगी कि क्या वह जानबूझकर नशा किया गया था या बिना मर्जी के —

⚡अगर बिना मर्जी के था, तो उसे इस धारा के तहत बचाव मिल सकता है।

May 25, 2025

"जब एक ही कार्य बने कई अपराध" – क्या कहती है धारा 9?

 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 9 / SECTION 71 IPC



धारा 9: जब कोई कार्य अनेक अपराधों से बना हो


यदि कोई कार्य जो एक अपराध है, ऐसे कई हिस्सों से मिलकर बना हो जिनमें से कोई भी हिस्सा अपने-आप में एक अपराध है, तो अपराधी को उन सभी अपराधों की सजा अलग-अलग नहीं दी जाएगी, जब तक कि कानून में ऐसा स्पष्ट रूप से न कहा गया हो।



यह दो स्थितियों में लागू होता है:


(a) जब कोई कार्य एक से अधिक कानूनों की परिभाषा में अपराध माना जाता है, Section 9 (2)(a) 

या

(b) जब कई ऐसे कार्य किए गए हों, जो अपने-आप में तो अपराध हों, लेकिन मिलाकर कोई अलग अपराध बनाते हों, Section 9 (2)(b) 


तो ऐसे मामलों में अपराधी को उस अपराध के लिए अधिकतम सजा नहीं दी जा सकती जो संबंधित अदालत द्वारा किसी एक अपराध के लिए दी जा सकती थी।


उदाहरण:

(a) अगर A, Z को डंडे से 50 बार मारता है, तो A ने "जानबूझकर चोट पहुँचाने" का अपराध किया है – यह पूरे पीटने के कार्य से भी सिद्ध होता है और हर एक चोट (हर एक बार मारना) भी अपने-आप में अपराध है।

अगर हर एक मारने पर A को एक साल की सजा हो, तो कुल 50 साल की सजा हो सकती है। लेकिन कानून के अनुसार, A को सिर्फ पूरे पीटने के लिए एक ही सजा दी जा सकती है – हर एक मार के लिए अलग-अलग नहीं।


निष्कर्ष:

धारा 9 इस सिद्धांत को दर्शाती है कि एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा नहीं दी जा सकती (यह "Double Jeopardy" सिद्धांत से भी जुड़ा है)।




धारा 9, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 — जो पहले धारा 71, IPC, 1860 के सिद्धांत से मेल खाती है — इसके अंतर्गत कुछ प्रमुख न्यायिक निर्णय (case laws) हैं, जो इस सिद्धांत की व्याख्या करते हैं कि "एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा नहीं दी जा सकती"।


 Case law  


1. तथ्य: अभियुक्त पर हत्या और चोट पहुंचाने के दो अलग-अलग अपराधों में मुकदमा चला।


निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब एक ही घटना कई अपराधों में आती है, तो अभियुक्त को एक ही सजा दी जाएगी — जो अधिकतम सख्त हो। दोहराव से बचना आवश्यक है।

Mohan Baitha v. State of Bihar (2001) 4 SCC 350



प्रभाव: यह धारा 9(1) के उद्देश्य को दर्शाता है — एक घटना जो कई हिस्सों में विभाजित हो सकती है, फिर भी एक ही अपराध मानी जाएगी यदि वह समग्र रूप से एक ही अपराध है।



2. तथ्य: अभियुक्त पर धोखाधड़ी के कई मामलों में अलग-अलग सजा दी गई।


निर्णय: कोर्ट ने कहा कि यदि अलग-अलग कार्य अलग-अलग अपराध हैं, और वे मिलकर कोई अन्य बड़ा अपराध बनाते हैं, तो सबसे कठोर सजा ही दी जा सकती है।

K. Satwant Singh v. State of Punjab, AIR 1960 SC 266


प्रभाव: यह धारा 9(2)(b) पर प्रकाश डालता है — जब कई छोटे अपराध मिलकर एक बड़ा अपराध बनाते हैं।



निष्कर्ष:

धारा 9 का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि:


एक ही अपराध के लिए व्यक्ति को बार-बार सजा न दी जाए।


यदि कोई कार्य कई कानूनों का उल्लंघन करता है, तो सबसे कठोर और उपयुक्त सजा ही दी जाए।


न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और समानता बनी रहे।


May 22, 2025

आजीवन कारावास और सजा के अंश

      BNS 2023 धारा 6  /  IPC की धारा 57      

 
आजीवन कारावास और सजा के अंश 

In calculating fractions of terms of punishment, imprisonment for life shall be reckoned as equivalent to imprisonment for twenty years unless otherwise provided.

जब किसी अपराध में दी गई सज़ा की अवधि का कोई अंश (fraction) निकालने की आवश्यकता होती है — जैसे कि छूट, पैरोल, या अन्य मामलों में — तो आजन्म कारावास (life imprisonment) को 20 वर्षों की सजा के बराबर माना जाएगा, जब तक कि किसी अन्य कानून में कुछ अलग प्रावधान न हो।    धारा 6 (BNS)





सीमाएँ और अपवाद:

धारा 6 में उल्लेख है कि यह नियम तब तक लागू होगा "जब तक कि अन्यथा प्रदान न किया गया हो।" इसका अर्थ है कि यदि कोई विशेष कानून या अदालती आदेश आजीवन कारावास को अलग तरह से परिभाषित करता है, तो वह इस धारा पर प्राथमिकता लेगा। उदाहरण के लिए, आतंकवाद या संगठित अपराध से संबंधित मामलों में, आजीवन कारावास का अर्थ वास्तव में मृत्यु तक कारावास हो सकता है।



Fractions of terms of punishment

दंड की अवधियों के अंशों की गणना

 

सजा में कमी का मामला

मान लीजिए, किसी अपराधी को किसी अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई है, और अदालत यह निर्णय लेती है कि उसे सजा का केवल 1/3 हिस्सा भुगतना होगा। धारा 6 के अनुसार, आजीवन कारावास को 20 वर्ष के रूप में माना जाएगा।


गणना: 20 वर्ष का 1/3 = लगभग 6 वर्ष और 8 महीने।

इस प्रकार, अपराधी को केवल 6 वर्ष और 8 महीने की सजा काटनी होगी, यदि कोई अन्य विशेष प्रावधान लागू नहीं है।



 जुर्माने के साथ सजा

यदि किसी अपराध के लिए सजा 7 वर्ष की जेल और जुर्माना है, लेकिन अपराधी केवल आधी सजा भुगतने के लिए पात्र है (उदाहरण के लिए, अच्छे व्यवहार के कारण)। धारा 6 के तहत, यदि सजा आजीवन कारावास होती, तो 20 वर्ष का आधार लिया जाता। लेकिन चूंकि सजा 7 वर्ष की है, आधी सजा होगी


गणना: 7 वर्ष का 1/2 = 3.5 वर्ष।

अपराधी को 3.5 वर्ष जेल में बिताने होंगे, बशर्ते अन्य कोई शर्त लागू न हो। 



 परिवीक्षा (Probation) का मामला

यदि किसी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, लेकिन उसे परिवीक्षा पर रिहा किया जाता है, और परिवीक्षा अवधि सजा के 1/4 हिस्से के बराबर है, तो


गणना: 20 वर्ष का 1/4 = 5 वर्ष।

अपराधी को 5 वर्ष की परिवीक्षा अवधि पूरी करनी होगी, जब तक कि कानून में अन्यथा निर्दिष्ट न हो।



May 21, 2025

परिस्थिति, इरादा और भागीदारी के आधार पर हर व्यक्ति पर अलग-अलग अपराध के आरोप

 



भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 3(9) / IPC की धारा 38 



 यदि दो या अधिक व्यक्ति एक अपराध में सम्मिलित हों, तो यह जरूरी नहीं कि सभी के ऊपर समान अपराध का आरोप लगे। बल्कि उनकी मानसिक अवस्था (mens rea) परिस्थिति, इरादा और भागीदारी के आधार पर हर व्यक्ति पर अलग-अलग अपराध के आरोप लग सकते हैं।धारा 3(9) BNS 



उदाहरण 


A ने Z को इतना उकसाया (grave provocation) कि उसने गुस्से में आकर Z की हत्या कर दी। ऐसे में A का अपराध "culpable homicide not amounting to murder" होगा, यानी वह हत्या है, लेकिन उसे हत्या (murder) नहीं माना जाएगा क्योंकि उसने उकसावे में आकर ऐसा किया।

वहीं B, जो पहले से Z से द्वेष रखता था और Z को मारने का पूरा इरादा रखता था, वह A की मदद करता है Z को मारने में। लेकिन चूंकि B को कोई उकसावा नहीं मिला था और उसने जानबूझकर और द्वेषभाव से Z को मारा, इसलिए B का अपराध मर्डर (Murder) माना जाएगा।


Case law

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दो या अधिक व्यक्ति एक अपराध में सम्मिलित हों, तो यह जरूरी नहीं कि सभी के ऊपर समान अपराध का आरोप लगे। अगर उनकी मानसिक अवस्था (mens rea) अलग है तो उन पर अलग-अलग अपराध के आरोप लग सकते हैं।Krishna Govind Patil v. State of Maharashtra, AIR 1963 SC 1413



April 19, 2025

"IPC धारा 328 बनाम BNS धारा 87: मादक पदार्थ और अपराध की मंशा"


 


किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नशीला पदार्थ देना:


अगर कोई व्यक्ति किसी और को जानबूझकर कोई जहरीली चीज़, नशीली दवा या अन्य हानिकारक चीज़ इस इरादे से देता है, पिलाता है, या किसी तरह से शरीर में पहुंचाता है ताकि उसे बेहोश कर सके या उसकी मानसिक स्थिति बिगाड़ सके, और फिर उससे कोई अपराध करे — तो यह धारा 328 ( IPC ) / 87 (BNS )के तहत अपराध है।





2. आवश्यक तत्व (Essential Ingredients):


 अपराध सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:


🪄 नशीली/हानिकारक वस्तु का प्रयोग या प्रयोग कराने की क्रिया (Actus Reus)


🪄 अपराध की मंशा (Mens Rea) — अर्थात यह कार्य किसी अपराध को करने के उद्देश्य से किया गया हो


🪄 पीड़ित को बेहोश करना या उसकी शक्ति कम करना


🪄 कार्य जानबूझकर (Intentionally) किया गया हो




3. महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Important Case Laws):


आरोपी ने महिला को नशीली चीज दी और फिर उससे बलात्कार किया।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

> "When a person administers any intoxicating substance with the intention to commit any offence, even prior to the actual commission of offence, Section 328 gets attracted."

State of Rajasthan v. Jaggu Ram, AIR 2006 SC 1507



अफीम देकर चोरी की गई।

कोर्ट ने कहा कि "mere intoxication is not sufficient; intention to facilitate commission of offence must be proved."

Khet Singh v. Union of India, 1994 Cri LJ 1378



4. Mens Rea का महत्व:


🪄धारा 328 (BNS की धारा 87 ) में Mens Rea (मंशा) अत्यंत आवश्यक तत्व है।

🪄यदि नशीली वस्तु का प्रयोग मज़ाक, अनजाने में, या इलाज के लिए किया गया हो और कोई अपराध नहीं किया गया या अपराध की मंशा न हो, तो धारा 328 लागू नहीं होगी।

🪄धारा 328 ( BNS की धारा 87 ) में "उद्देश्य" (intention) अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभियोजन को यह सिद्ध करना होता है कि आरोपी ने जानबूझकर ऐसा किया ताकि अपराध को अंजाम दिया जा सके।

🪄सिर्फ बेहोश कर देना पर्याप्त नहीं है — यह भी साबित करना होगा कि ऐसा किसी अपराध को करने की मंशा से किया गया।


---


5. व्यावहारिक उपयोग (Practical Use Cases):


🪄चोरी या डकैती के पहले व्यक्ति को बेहोश करना


🪄महिलाओं को नशीला पेय पिलाकर यौन अपराध


🪄ड्रग्स/स्पाइकिंग के मामले में विशेष रूप से कॉलेज, पार्टी या ट्रेनों में


🪄होटल या बार में बेहोशी का फायदा उठाकर मोबाइल/वस्तुएं चुराना






दंड (Punishment):


अधिकतम 10 वर्ष का कठोर कारावास


साथ में जुर्माना


यह गंभीर अपराध है और गैर-जमानती (non-bailable) और गंभीर प्रकृति का संज्ञेय अपराध (cognizable offense) माना जाता है।


April 18, 2025

"Grievous Hurt" धारा 320 (IPC) / धारा 115 (BNS, 2023) धाराएं, सजा और न्यायालय के दृष्टांत"

                  गंभीर चोट 

          (Grievous Hurt)           

 



 गंभीर चोट (Grievous Hurt) वह चोट होती है जो व्यक्ति के शरीर को इतना नुकसान पहुँचाए कि वह सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो जाए या स्थायी रूप से विकलांगता उत्पन्न हो।धारा 320 (IPC) / धारा 115 (BNS, 2023)

केस: K. D. Gaikwad v. State of Maharashtra (AIR 1978 SC 207)




 मेडिकल दृष्टिकोण से 8 प्रकार की गंभीर चोटें:

 भारतीय दंड संहिता की धारा 320 / BNS की धारा 115 में उल्लिखित हैं...


1. स्थायी दृष्टि हानि (Permanent loss of vision) – एक या दोनों आँखों से।


2. स्थायी श्रवण शक्ति हानि (Permanent loss of hearing) – एक या दोनों कानों से।


3. अंग या जोड़ों की कार्यक्षमता समाप्त (Loss of function of limb/joint permanently)


4. किसी अंग का कट जाना (Amputation of limb or part of body)


5. हड्डी या जोड़ का टूटना (Fracture or dislocation)


6. किसी अंग का स्थायी विकार (Permanent deformity of body part)


7. 20 दिन से अधिक तक सामान्य कार्य करने में असमर्थता (Medical certificate based disablement)


8. महिला का गर्भपात (Miscarriage caused without consent)



आवश्यक तत्व 

(Essential Ingredients):


1. चोट होनी चाहिए (There must be hurt):

शारीरिक कष्ट या शरीर में क्षति।



2. चोट उपरोक्त 8 में से किसी प्रकार की होनी चाहिए:

यानी वह चोट इतनी गंभीर हो कि उसे “grievous” की श्रेणी में रखा जाए।



3. इरादा या जानकारी (Intention or knowledge):

आरोपी को चोट पहुँचाने का इरादा या जानकारी होनी चाहिए कि उसकी क्रिया से गंभीर चोट हो सकती है।



न्यायालय ने किन बातों पर जोर दिया है?


🪄 चोट की प्रकृति (Nature of Injury)



🪄 चोट का प्रभाव (Effect on Victim)



🪄 चोट की अवधि (Duration of Disability)



🪄 चोट की गहराई और स्थायित्व (Permanency)



---


  चिकित्सा प्रमाण (Medical Proof):


गंभीर चोट साबित करने के लिए निम्नलिखित मेडिकल दस्तावेज और मूल्यांकन आवश्यक होते हैं:


X-ray रिपोर्ट (Fracture की पुष्टि हेतु)


Audiometry test (सुनने की शक्ति की जांच हेतु)


Ophthalmologic report (दृष्टि की स्थायी हानि हेतु)


Medical Disability Certificate (20 दिन या अधिक की असमर्थता हेतु)



 न्यायिक महत्व (Legal Importance):


🪄 यदि डॉक्टर स्पष्ट रूप से कहता है कि हड्डी टूटी है, तो वह स्वतः Grievous Hurt मानी जाएगी।


🪄 Medical Opinion कोर्ट के लिए प्राथमिक साक्ष्य होता है, लेकिन अंतिम निर्णय न्यायालय करता है।


🪄 Medical Jurisprudence यह मानती है कि objective signs और lab reports injury को validate करने के लिए जरूरी हैं।


Grievous Hurt (गंभीर चोट) के लिए सजा (punishment) का प्रावधान भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 325 और भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 117 में किया गया है।



---


1. IPC, 1860 – Section 325 (Old Law)

"Voluntarily causing grievous hurt"


सजा:

अधिकतम 7 वर्ष का कारावास

जुर्माना, या दोनों



2. Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), 2023 – Section 117

 "गंभीर चोट जानबूझकर पहुँचाना" (Voluntarily causing grievous hurt)

सजा:

7 वर्ष तक का सादा या कठोर कारावास,

जुर्माना, या दोनों


 अगर विशेष परिस्थितियाँ हों तो सजा बढ़ सकती है, जैसे:


a) अगर अपराध किसी लोक सेवक पर हुआ हो


b) अगर अपराध महिला/बच्चे पर क्रूरता से किया गया हो


c) अगर घातक हथियार से किया गया हो (Section 326 IPC / Section 118 BNS)


Section 326 IPC / Section 118 BNS:

 "गंभीर चोट खतरनाक हथियार से पहुँचाना"


सजा:

10 वर्ष तक का कठोर कारावास (extendable to life imprisonment)

जुर्माना


April 16, 2025

हत्या ( Murder )और मानव वध ( Culpable Homicide )में क्या फर्क है?

 


 हत्या ( Murder ) और गैर-इरादतन हत्या (culpable homicide) के  बीच का अंतर 


कोर्ट ने यह तय करने के लिए एक चार-स्तरीय टेस्ट (test) भी दिया कि क्या हत्या है या नहीं।


विचार के तत्व:


1. चोट जानबूझकर दी गई हो।


2. वह चोट घातक हो और शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर हो।


3. ऐसी चोट से मृत्यु का होना स्वाभाविक हो।


4. आरोपी को इस प्रभाव का ज्ञान हो।



महत्व:

🪄यह केस अब भी हत्या के मामलों में मंशा (intention) और ज्ञान (knowledge) के निर्धारण के लिए आधार (precedent) माना जाता है।


🪄"Murder और Culpable Homicide दोनों में मृत्यु होती है, पर अंतर मंशा (intention) और ज्ञान (knowledge) का होता है।"

🪄"जब जानबूझकर ऐसी चोट दी जाती है जिससे मृत्यु हो सकती है, पर मंशा जान से मारने की नहीं थी — तब वह Culpable Homicide है।"




Case: Reg v. Govinda (1876) 1 Bom HCR 227

महत्त्व: Murder और Culpable Homicide के बीच अंतर का मूलभूत केस

तथ्य:

पति ने पत्नी को ज़मीन पर गिराया और उसके चेहरे पर घूंसे मारे जिससे वह मर गई। मृत्यु का कारण सिर पर लगी चोट थी।

जजमेंट:

बॉम्बे हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि यह Culpable Homicide है, Murder नहीं। क्योंकि मारने की मंशा (intention to kill) स्पष्ट नहीं थी।

न्यायिक विवेक:

जस्टिस मेल्विल ने Murder और Culpable Homicide के बीच का अंतर स्पष्ट किया:

Culpable Homicide is the genus, and Murder is a species of it।

हर Murder एक Culpable Homicide होता है, पर हर Culpable Homicide Murder नहीं होता।



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2. Case: Virsa Singh v. State of Punjab, AIR 1958 SC 465



तथ्य:

आरोपी ने भाले से एक व्यक्ति की जांघ में चोट मारी जिससे मृत्यु हो गई।

जजमेंट:

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को Murder का दोषी ठहराया।

न्यायिक विवेक:

चार आवश्यक तत्व जिनसे धारा 300 की तीसरी क्लॉज के तहत Murder बनता है:

1. Bodily injury होनी चाहिए।


2. Injury objective रूप से पर्याप्त हो कि मृत्यु हो सकती है।


3. Injury व्यक्ति विशेष को होनी चाहिए।


4. Accused को उस injury को पहुँचाने का intention होना चाहिए।




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धारा आधारित विश्लेषण:

धारा 299 IPC / 100 (BNS) (Culpable Homicide): जब कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिससे मृत्यु की संभावना हो, लेकिन जान से मारने की सीधी मंशा नहीं होती।

धारा 300 IPC / 101 (BNS) (Murder): जब मंशा स्पष्ट हो कि मृत्यु ही होनी चाहिए।