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विरोध याचिका (Protest Petition )

 विरोध याचिका 

(Protest Petition)



क्लोजर रिपोर्ट (FR) के खिलाफ विरोध याचिका (Protest Petition) भारतीय आपराधिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत शिकायतकर्ता या पीड़ित पक्ष पुलिस द्वारा लगायी गई क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दे सकता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) / भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के प्रावधानों पर आधारित है। 


महत्वपूर्ण प्रावधान और उपबंध:


1.क्लोजर रिपोर्ट का आधार (BNSS धारा 189 / CrPC धारा 173):

पुलिस अधिकारी जांच के बाद यदि यह निष्कर्ष निकालता है कि किसी मामले में पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं या अपराध सिद्ध नहीं होता, तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर सकता है। यह रिपोर्ट जांच को समाप्त करने का प्रस्ताव रखती है।


2.विरोध याचिका (protest petition) का अधिकार:

यदि शिकायतकर्ता या पीड़ित पक्ष पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है, तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष विरोध याचिका दायर कर सकता है। यह याचिका पुलिस की जांच को अपर्याप्त या पक्षपातपूर्ण मानते हुए आगे की कार्रवाई की मांग करती है।यह प्रक्रिया शिकायतकर्ता को यह सुनिश्चित करने का अवसर देती है कि न्याय प्रक्रिया में उनकी बात सुनी जाए।


3.मजिस्ट्रेट के विकल्प (CrPC धारा 190 / BNSS धारा 210):

क्लोजर रिपोर्ट प्राप्त होने पर मजिस्ट्रेट के पास तीन मुख्य विकल्प होते हैं:

रिपोर्ट स्वीकार करना: यदि मजिस्ट्रेट सहमत होता है कि साक्ष्य अपर्याप्त हैं, तो वह क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर मामले को बंद कर सकता है।

विरोध याचिका पर संज्ञान लेना: मजिस्ट्रेट विरोध याचिका को शिकायत के रूप में मान सकता है और स्वयं संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई शुरू कर सकता है (CrPC धारा 200-202)।

आगे जांच का आदेश: मजिस्ट्रेट पुलिस को मामले की और जांच करने का निर्देश दे सकता है (BNSS धारा 193(9))।



4.शिकायतकर्ता की सुनवाई का अधिकार:

विरोध याचिका दायर करने पर मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता को सुनने का अवसर देना होता है। यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ित पक्ष अपनी आपत्तियां और साक्ष्य प्रस्तुत कर सके।


5.अग्रिम जांच का प्रावधान (BNSS धारा 193(9)):

यदि विरोध याचिका के आधार पर नए साक्ष्य या तथ्य सामने आते हैं, तो मजिस्ट्रेट पुलिस को अग्रिम जांच का आदेश दे सकता है। यह जांच 90 दिनों के भीतर पूरी करनी होती है, जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकता है।


6.संवैधानिक और कानूनी संरक्षण:

यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने का एक हिस्सा है। यह पीड़ित को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार देती है।



 संबंधित केस:


1. Abhinandan Jha vs Dinesh Mishra [(1967) AIR 1345]


निर्णय:

🪄पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद मजिस्ट्रेट जांच जारी रखने या समन जारी करने के लिए स्वतंत्र है।



Bhagwant Singh vs Commissioner of Police & Anr. (1985) 2 SCC 537


 निर्णय:

🪄जब पुलिस ‘क्लोजर रिपोर्ट’ (Final Report under Section 173 CrPC) फाइल करती है और मजिस्ट्रेट उसे स्वीकार करना चाहता है, तो शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है।


🪄Protest Petition अगर दाखिल हुई है, तो उसे बिना सुनवाई के रद्द करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।



Subramanian Swamy vs Manmohan Singh & Anr. (2012) 3 SCC 64


निर्णय:

🪄Protest Petition को केवल एक औपचारिक पत्र नहीं माना जा सकता। अगर उसमें पर्याप्त तथ्य और साक्ष्य हैं, तो मजिस्ट्रेट को मामले की न्यायिक जांच करनी चाहिए।



महत्व:

निष्पक्षता सुनिश्चित करना: विरोध याचिका पुलिस की एकतरफा कार्रवाई या लापरवाही को चुनौती देने का माध्यम है।

पीड़ित का सशक्तिकरण: यह पीड़ित पक्ष को यह अधिकार देता है कि वह अपनी शिकायत को बंद नहीं होने दे और मामले को आगे बढ़ाने की मांग कर सके।

न्यायिक नियंत्रण: मजिस्ट्रेट को जांच प्रक्रिया पर निगरानी रखने और आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने की शक्ति मिलती है।