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Specific Relief Act, 1963 की Section 38 स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction)


 Specific Relief Act, 1963 की Section 38 स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) से संबंधित है। यह न्यायालय को यह शक्ति देती है कि वह किसी व्यक्ति को किसी कार्य को करने से रोक सके जिससे वादी के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो या हो सकता हो।


(स्थायी निषेधाज्ञा) से संबंधित दैनिक जीवन में आने वाली समस्याएं



समस्या:1 अतिक्रमण (Encroachment on Property)

आपके घर के सामने का रास्ता आपके कब्जे में है, लेकिन पड़ोसी जबरन वहां दीवार बना रहा है। 

 



समस्या:2 निजी संपत्ति पर कब्जा (Trespassing)

कोई व्यक्ति बार-बार आपकी खेती योग्य जमीन में घुसकर फसल नष्ट कर रहा है। 



समस्या:3 ब्रांड या व्यापार चिह्न का दुरुपयोग (Trademark Misuse)

कोई दूसरा व्यापारी आपके ब्रांड नाम का इस्तेमाल करके अपना माल बेच रहा है। 



समस्या:4 सार्वजनिक रास्ता रोकना (Blocking Public Way)

किसी ने गाँव या मोहल्ले का सार्वजनिक रास्ता अवैध रूप से बंद कर दिया है। 



समस्या:5 प्रदूषण फैलाना (Causing Pollution)

कोई फैक्ट्री आपके आवासीय इलाके में धुआँ या गंदा पानी छोड़ रही है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। 



  







धारा 38 – स्थायी निषेधाज्ञा कब दी जाती है (When perpetual injunction granted)



(1) सामान्य प्रावधान:


 "जब कोई व्यक्ति वादी के किसी वैधानिक या न्यायसंगत अधिकार का उल्लंघन कर रहा हो या करने की धमकी दे रहा हो, तो न्यायालय उस व्यक्ति को ऐसा करने से स्थायी रूप से रोक सकता है।"




(2) न्यायालय स्थायी निषेधाज्ञा तब देता है जब –


 (a) जब प्रतिवादी, वादी के अधिकारों का वास्तविक उल्लंघन कर रहा हो। 


(b) जब प्रतिवादी ऐसा उल्लंघन करने की धमकी दे रहा हो और ऐसा करना संभावित हो।


 (c) जब प्रतिवादी यह इन्कार करता है कि वादी का कोई अधिकार है, तब भी स्थायी निषेधाज्ञा दी जा सकती है।


 (d) अगर प्रतिवादी वादी के कब्जे में संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा है या कब्जा हटाने की कोशिश कर रहा है।






   Section 38 (स्थायी निषेधाज्ञा) से जुड़ी सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय:। 




1. न्यायालय ने कहा कि स्थायी निषेधाज्ञा तब दी जाती है जब केवल क्षतिपूर्ति (damages) पर्याप्त उपाय नहीं हो। यदि वादी के अधिकारों का निरंतर उल्लंघन हो रहा हो, तो स्थायी निषेधाज्ञा उचित है।

K.K. Verma v. Union of India, AIR 1954 All 44




2. सुप्रीम कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण तत्व बताए, जो निषेधाज्ञा देने के लिए जरूरी हैं: Dalpat Kumar v. Prahlad Singh, AIR 1993 SC 276


(i) Prima facie case (प्रथम दृष्टया मामला)


(ii) Balance of convenience वादी के पक्ष में होना चाहिए


(iii) Irreparable injury (अपूरणीय क्षति) होने की संभावना होनी चाहिए


स्पष्टीकरण:

यदि ये तीनों तत्व पूरे होते हैं, तभी निषेधाज्ञा दी जा सकती है।




3. न्यायालय ने कहा कि यदि वादी का कानूनी अधिकार स्थापित है और उसे वास्तविक खतरा है कि प्रतिवादी उसकी संपत्ति या अधिकार का उल्लंघन करेगा, तो स्थायी निषेधाज्ञा दी जानी चाहिए।  M. Gurudas v. Rasaranjan, (2006) 8 SCC 367




महत्वपूर्ण बिंदु:


⚡केवल क्षतिपूर्ति पर्याप्त नहीं है।



⚡वादी को अपूरणीय क्षति से बचाने के लिए निषेधाज्ञा दी जाती है।



⚡Prima facie case + Balance of convenience + Irreparable loss आवश्यक है।



⚡यह निषेधाज्ञा स्थायी होती है और मुकदमे के अंतिम निर्णय के रूप में दी जाती है।



⚡यह केवल संवैधानिक, वैधानिक या न्यायसंगत अधिकारों की रक्षा के लिए दी जाती है।



⚡निषेधाज्ञा तभी दी जाएगी जब मुआवजा (damages) पर्याप्त समाधान न हो।