📜 " सिर्फ अपराध करना ही नहीं, उकसाना भी जुर्म – BNS की धारा 46 का प्रावधान"
📜 भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में धारा 46 एक ऐसा प्रावधान है जो साफ करता है —
✒"जो अपराध करवाने के लिए उकसाता है, योजना बनाता है या मदद करता है, वह भी उतना ही दोषी है जितना अपराध करने वाला।"
✒किसी अपराध के लिए उकसाना (Instigation),
✒अपराध के लिए षड्यंत्र (Conspiracy) करना,
✒या अपराध को आसान बनाने के लिए सहायता (Aid) देना,
✒ यह सब अभिकल्पना (Abetment) कहलाता है और अपराध माना जाएगा।
1. अपराध न होने पर भी जुर्म – अगर अपराध नहीं हुआ, तब भी उकसाने वाला दोषी।
2. अक्षम व्यक्ति को उकसाना – बच्चा, मानसिक रोगी या कानूनी तौर पर अक्षम व्यक्ति को उकसाना भी अपराध।
3. उकसाने का उकसाना – किसी को उकसाने के लिए उकसाना भी जुर्म है।
4. सीधा संपर्क जरूरी नहीं – षड्यंत्र में शामिल होना ही काफी है, चाहे अपराधी से बात न हुई हो।
✒A ने B को C की हत्या करने को कहा, B ने मना कर दिया – A दोषी।
✒A ने 6 साल के बच्चे को Z की हत्या के लिए उकसाया – बच्चा बरी, A पर हत्या का मुकदमा।
✒A ने मानसिक रोगी को घर में आग लगाने के लिए कहा – आगजनी का दोषी A।
📜 धारा 46 खुद सजा तय नहीं करती, बल्कि कहती है कि —
✒ "सजा वही होगी जो उस अपराध के लिए तय है, जिसे करवाने के लिए उकसाया गया है।"
✒यानि अगर हत्या के लिए उकसाया, तो हत्या की ही सजा – फांसी या उम्रकैद।
✒अपराध की जड़ में अक्सर प्लानर (Mastermind) होता है, जो खुद हाथ गंदे नहीं करता।
✒धारा 46 ऐसे लोगों को भी सीधे कानूनी जाल में लाती है।