"जब विवाद सिविल हो, तो FIR क्यों? सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट गाइडलाइन"
"जहाँ विवाद मुख्यतः सिविल प्रकृति का हो, वहाँ आपराधिक मामला दर्ज करना न्यायसंगत नहीं है"
न्यायालयों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई मामला मूल रूप से सिविल प्रकृति का है — जैसे कि ऋण विवाद, अनुबंध उल्लंघन, प्रॉपर्टी विवाद — और उसमें आपराधिक मंशा का कोई ठोस आधार नहीं है, तो ऐसी एफआईआर को रद्द किया जाना चाहिए। ऐसा करना कानून के दुरुपयोग को रोकने और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
कुछ महत्वपूर्ण निर्णय: सुप्रीम कोर्ट
⚡ "अगर लोन ना चुकाने से संबंधित विवाद है, तो यह सिविल प्रकृति का है, और इसमें आपराधिक मंशा का आरोप बिना ठोस साक्ष्य के नहीं लगाया जा सकता।"
Case. G. Sagar Suri v. State of U.P., (2000) 2 SCC 636
⚡ "केवल इसलिए कि किसी सिविल अनुबंध का उल्लंघन हुआ है, यह आपराधिक मामला नहीं बन जाता। यदि एफआईआर का उद्देश्य दबाव बनाना है, तो उसे रद्द किया जाना चाहिए।"
Indian Oil Corporation v. NEPC India Ltd., (2006) 6 SCC 736
⚡ "कोई भी सिविल विवाद अगर आपराधिक आरोपों के साथ कोर्ट में लाया जाए, तो कोर्ट को यह देखना होगा कि वास्तव में आपराधिक मंशा थी या नहीं। यदि ऐसा नहीं है, तो FIR रद्द की जानी चाहिए।"
Paramjeet Batra v. State of Uttarakhand, (2013) 11 SCC 673
⚡ “जहाँ FIR का उद्देश्य सिविल विवाद को आपराधिक रंग देकर प्रतिशोध लेना या दबाव बनाना है, वहाँ FIR रद्द की जा सकती है।”
State of Haryana v. Bhajan Lal (1992):
न्यायिक दृष्टिकोण का सार:
Procedure of code
1. सिविल विवादों का निवारण सिविल कोर्ट द्वारा होना चाहिए।
2. एफआईआर का उद्देश्य अगर दबाव बनाना या बदले की भावना है, तो वह दुरुपयोग है।
3. आपराधिक कानूनों का उपयोग अनुचित लाभ या धमकी के रूप में नहीं किया जा सकता।