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July 17, 2025

"भारतीय न्याय संहिता की धारा 10: संदेह में सजा का सिद्धांत"

 


  जब अपराध तय न हो, तो कौन सी सजा मिलेगी? 



भारत में न्याय व्यवस्था का आधार केवल सजा देना नहीं, बल्कि न्यायसंगत सजा देना है।

इसी सिद्धांत को मजबूती देती है भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 10, जो बताती है कि यदि एक व्यक्ति पर एक से अधिक अपराधों का संदेह हो लेकिन यह तय न हो पाए कि उसने कौन सा अपराध किया है, तो उसे सबसे कम सजा वाले अपराध की सजा दी जाएगी।



विधिक प्रावधान (Legal Provision – Section 10 BNS, 2023):


"जहां किसी व्यक्ति को अनेक अपराधों में से किसी एक का दोषी माना जाता है लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह कौन-सा है, और इन सभी अपराधों की सजाएं अलग-अलग हैं, तो उस व्यक्ति को उस अपराध की सजा दी जाएगी जिसकी सजा सबसे कम है


🟨 उदाहरण से समझें 


मान लीजिए राजेश पर तीन आरोप हैं:


1. चोरी – 3 साल की सजा



2. धोखाधड़ी – 5 साल की सजा



3. आपराधिक विश्वास भंग – 7 साल की सजा




लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि राजेश ने इनमें से कौन-सा अपराध किया,

फिर भी यह स्पष्ट है कि राजेश ने इन तीनों में से कोई एक अपराध अवश्य किया है।

तो ऐसी स्थिति में उसे सिर्फ चोरी (3 साल) की सजा दी जाएगी, क्योंकि वह सबसे कम दंडनीय अपराध है।



🟥 उद्देश्य और महत्त्व (Purpose and Importance):


यह धारा "संशय का लाभ आरोपी को" (Benefit of Doubt) सिद्धांत पर आधारित है।


न्यायिक सिद्धांत कहता है: “सौ अपराधी छूट जाएं, पर एक निर्दोष को सजा न हो।”


धारा 10 कठोरता नहीं, संतुलित और न्यायिक दंड की ओर संकेत करती है।




🟪 निष्कर्ष (Conclusion):


धारा 10 यह सुनिश्चित करती है कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को कठोर दंड न मिले।

यह न्याय और दया के बीच संतुलन का उदाहरण है और भारतीय न्याय प्रणाली के मानवीय दृष्टिकोण को उजागर करती है।

May 09, 2025

गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide not amounting to Murder)

 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 110 गैर-इरादतन हत्या के प्रयास (Attempt to Commit Culpable Homicide) से संबंधित है। यह धारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 308 के समकक्ष है, 


यह तब लागू होता है जब कार्य में हत्या (Murder) का इरादा नहीं होता, बल्कि यह जानते हुए किया जाता है कि कार्य से मृत्यु हो सकती है।




धारा 308 (गैर-इरादतन हत्या का प्रयास) के तहत हाल के कुछ महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय  जो इसके तत्वों और व्याख्या को स्पष्ट करते हैं:


1. रामजी प्रसाद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) 

   - कोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय  

 

  - मामला: अभियुक्तों पर शिकायतकर्ता और उसके भाई पर लोहे की रॉड, ईंट और देसी पिस्तौल के बट से हमला करने का आरोप था, जिससे गंभीर सिर की चोटें आईं। अभियुक्तों ने निर्वहन (discharge) की मांग की, यह दावा करते हुए कि चोटें गंभीर नहीं थीं।  


   - निर्णय: कोर्ट ने कहा कि धारा 308 के लिए चोटों की गंभीरता से अधिक महत्वपूर्ण अभियुक्त का इरादा या ज्ञान और परिस्थितियां हैं। धारा 308 दो भागों में है: पहला, जहां चोट नहीं होती, और दूसरा, जहां चोट होती है। कोर्ट ने निर्वहन याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है।  


   - महत्व : यह निर्णय स्पष्ट करता है कि धारा 308 में चोट की प्रकृति से अधिक इरादे और परिस्थितियों का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।




2. अब्दुल अंसार बनाम केरल राज्य (2023)

   - कोर्ट: सर्वोच्च न्यायालय  


   - मामला : एक बस कंडक्टर (अभियुक्त) ने बस की घंटी बजाई, जिसके बाद एक छात्रा (13 वर्ष) बस से गिरकर घायल हो गई। अभियुक्त पर धारा 308 के तहत मामला दर्ज किया गया।  


   -  निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त का घंटी बजाने का कार्य मृत्यु होने की संभावना वाला नहीं था, और न ही इसमें गैर-इरादतन हत्या का इरादा या ज्ञान था। इसलिए, धारा 308 के तहत अपराध सिद्ध नहीं हुआ। हालांकि, कोर्ट ने CrPC की धारा 222(2) के तहत कम गंभीर अपराध के लिए 6 महीने की सजा दी और पीड़िता को मुआवजा बढ़ाया।  



   - महत्व : यह मामला धारा 308 के लिए इरादे और ज्ञान की आवश्यकता को रेखांकित करता है और कम गंभीर अपराधों के लिए वैकल्पिक सजा की संभावना को दर्शाता है।







4. दिल्ली जिला न्यायालय (2017)


   - मामला : अभियुक्त पर धारा 308 के तहत आरोप था, लेकिन अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य के माध्यम से अभियुक्त के अपराध को साबित करने में विफल रहा।  


   - निर्णय : कोर्ट ने कहा कि धारा 308 के लिए निम्नलिखित सिद्ध करना आवश्यक है:  


     ⚡कार्य गैर-इरादतन हत्या के इरादे या ज्ञान के साथ किया गया हो।  


     ⚡ यदि कार्य से मृत्यु होती, तो यह गैर-इरादतन हत्या होता।  

     अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।  



   -  महत्व : यह मामला अभियोजन पक्ष पर स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।




 धारा 308 के तत्व 




- इरादा/ज्ञान : अभियुक्त को यह जानना चाहिए कि उसका कार्य मृत्यु का कारण बन सकता है, लेकिन हत्या का इरादा नहीं होना चाहिए।  


- कार्य की प्रकृति : कार्य ऐसा होना चाहिए कि यदि वह पूरा होता, तो गैर-इरादतन हत्या (धारा 304) होती, न कि हत्या (धारा 302)।  


- सजा : बिना चोट के 3 वर्ष तक की कैद या जुर्माना, या दोनों; चोट के साथ 7 वर्ष तक की कैद या जुर्माना, या दोनों।  



- साक्ष्य का बोझ : अभियोजन पक्ष को इरादे और परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से साबित करना होगा।  









May 06, 2025

बीएनएस धारा 333 क्या है?

 बीएनएस धारा 333 क्या है?


भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 333 एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो घर में अनधिकृत प्रवेश (House Trespass) के साथ-साथ चोट पहुंचाने, हमला करने, या गलत तरीके से रोकने की तैयारी करने वाले अपराध को दंडित करती है। यह धारा पहले की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 452 का स्थान लेती है ।




333. Whoever commits house-trespass, having made preparation for causing hurt to any person or for assaulting any person, or for wrongfully restraining any person, or for putting any person in fear of hurt, or of assault, or of wrongful restraint, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine. Bare act



धारा 333 के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी के घर में बिना अनुमति प्रवेश करता है और उसने पहले से ही निम्नलिखित में से किसी एक की Planning की हो, तो वह इस धारा के तहत अपराधी माना जाएगा:



चोट पहुंचाने की मंशा (Hurt)।



हमला करने की मंशा ।



गलत तरीके से रोकने की मंशा (Wrongful Restraint)।किसी को चोट, हमले, या गलत रोक के भय में डालने की मंशा।




धारा 333 के आवश्यक तत्व 


इस धारा के तहत अपराध साबित करने के लिए निम्नलिखित तत्व मौजूद होने चाहिए:



अनधिकृत प्रवेश: व्यक्ति ने बिना अनुमति किसी के घर या निजी संपत्ति में प्रवेश किया हो।



पूर्व तैयारी: प्रवेश करने से पहले अपराधी ने चोट पहुंचाने, हमला करने, या गलत तरीके से रोकने की योजना बनाई हो या इसके लिए साधन (जैसे हथियार) साथ लाया हो।



मंशा: अपराधी का इरादा घर के निवासियों को नुकसान पहुंचाने, डराने, या उनकी स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने का हो।




सजा (Punishment)धारा 333 के तहत अपराध के लिए निम्नलिखित दंड का प्रावधान है:


🪄कारावास: अधिकतम 7 वर्ष तक की सजा (साधारण या कठोर कारावास)।


🪄जुर्माना: अदालत द्वारा अपराध की गंभीरता के आधार पर तय किया गया आर्थिक दंड।


🪄सजा की अवधि अपराध की गंभीरता, अपराधी की मंशा, और इस्तेमाल किए गए साधनों (जैसे हथियार) पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, घातक हथियार के साथ प्रवेश करने पर अधिकतम सजा दी जा सकती है।



 कानूनी विशेषताएं 


संज्ञेय अपराध (Cognizable): पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के FIR दर्ज कर सकती है और आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।


गैर-जमानती (Non-Bailable): जमानत का अधिकार स्वतः नहीं है। जमानत के लिए अदालत में अपील करनी पड़ती है, जहां जज अपराध की गंभीरता और आरोपी के व्यवहार को देखकर फैसला लेते हैं।


गैर-समझौता योग्य (Non-Compoundable): इस अपराध में पीड़ित और आरोपी के बीच समझौता नहीं हो सकता। मामले का फैसला केवल अदालत ही कर सकती है।




 जमानत (Bail) 


यह अपराध गैर-जमानती है,  हालांकि, निम्नलिखित परिस्थितियों में जमानत मिल सकती है:

⚡यदि अपराध का व्यवहार कम गंभीर हो।

⚡यदि आरोपी को झूठे मामले में फंसाया गया हो।

⚡यदि आरोपी का आपराधिक इतिहास न हो।