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"भारतीय न्याय संहिता की धारा 10: संदेह में सजा का सिद्धांत"

 


  जब अपराध तय न हो, तो कौन सी सजा मिलेगी? 



भारत में न्याय व्यवस्था का आधार केवल सजा देना नहीं, बल्कि न्यायसंगत सजा देना है।

इसी सिद्धांत को मजबूती देती है भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 10, जो बताती है कि यदि एक व्यक्ति पर एक से अधिक अपराधों का संदेह हो लेकिन यह तय न हो पाए कि उसने कौन सा अपराध किया है, तो उसे सबसे कम सजा वाले अपराध की सजा दी जाएगी।



विधिक प्रावधान (Legal Provision – Section 10 BNS, 2023):


"जहां किसी व्यक्ति को अनेक अपराधों में से किसी एक का दोषी माना जाता है लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह कौन-सा है, और इन सभी अपराधों की सजाएं अलग-अलग हैं, तो उस व्यक्ति को उस अपराध की सजा दी जाएगी जिसकी सजा सबसे कम है


🟨 उदाहरण से समझें 


मान लीजिए राजेश पर तीन आरोप हैं:


1. चोरी – 3 साल की सजा



2. धोखाधड़ी – 5 साल की सजा



3. आपराधिक विश्वास भंग – 7 साल की सजा




लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि राजेश ने इनमें से कौन-सा अपराध किया,

फिर भी यह स्पष्ट है कि राजेश ने इन तीनों में से कोई एक अपराध अवश्य किया है।

तो ऐसी स्थिति में उसे सिर्फ चोरी (3 साल) की सजा दी जाएगी, क्योंकि वह सबसे कम दंडनीय अपराध है।



🟥 उद्देश्य और महत्त्व (Purpose and Importance):


यह धारा "संशय का लाभ आरोपी को" (Benefit of Doubt) सिद्धांत पर आधारित है।


न्यायिक सिद्धांत कहता है: “सौ अपराधी छूट जाएं, पर एक निर्दोष को सजा न हो।”


धारा 10 कठोरता नहीं, संतुलित और न्यायिक दंड की ओर संकेत करती है।




🟪 निष्कर्ष (Conclusion):


धारा 10 यह सुनिश्चित करती है कि सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को कठोर दंड न मिले।

यह न्याय और दया के बीच संतुलन का उदाहरण है और भारतीय न्याय प्रणाली के मानवीय दृष्टिकोण को उजागर करती है।