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गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide not amounting to Murder)

 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 110 गैर-इरादतन हत्या के प्रयास (Attempt to Commit Culpable Homicide) से संबंधित है। यह धारा भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 308 के समकक्ष है, 


यह तब लागू होता है जब कार्य में हत्या (Murder) का इरादा नहीं होता, बल्कि यह जानते हुए किया जाता है कि कार्य से मृत्यु हो सकती है।




धारा 308 (गैर-इरादतन हत्या का प्रयास) के तहत हाल के कुछ महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय  जो इसके तत्वों और व्याख्या को स्पष्ट करते हैं:


1. रामजी प्रसाद और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) 

   - कोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय  

 

  - मामला: अभियुक्तों पर शिकायतकर्ता और उसके भाई पर लोहे की रॉड, ईंट और देसी पिस्तौल के बट से हमला करने का आरोप था, जिससे गंभीर सिर की चोटें आईं। अभियुक्तों ने निर्वहन (discharge) की मांग की, यह दावा करते हुए कि चोटें गंभीर नहीं थीं।  


   - निर्णय: कोर्ट ने कहा कि धारा 308 के लिए चोटों की गंभीरता से अधिक महत्वपूर्ण अभियुक्त का इरादा या ज्ञान और परिस्थितियां हैं। धारा 308 दो भागों में है: पहला, जहां चोट नहीं होती, और दूसरा, जहां चोट होती है। कोर्ट ने निर्वहन याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है।  


   - महत्व : यह निर्णय स्पष्ट करता है कि धारा 308 में चोट की प्रकृति से अधिक इरादे और परिस्थितियों का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।




2. अब्दुल अंसार बनाम केरल राज्य (2023)

   - कोर्ट: सर्वोच्च न्यायालय  


   - मामला : एक बस कंडक्टर (अभियुक्त) ने बस की घंटी बजाई, जिसके बाद एक छात्रा (13 वर्ष) बस से गिरकर घायल हो गई। अभियुक्त पर धारा 308 के तहत मामला दर्ज किया गया।  


   -  निर्णय : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त का घंटी बजाने का कार्य मृत्यु होने की संभावना वाला नहीं था, और न ही इसमें गैर-इरादतन हत्या का इरादा या ज्ञान था। इसलिए, धारा 308 के तहत अपराध सिद्ध नहीं हुआ। हालांकि, कोर्ट ने CrPC की धारा 222(2) के तहत कम गंभीर अपराध के लिए 6 महीने की सजा दी और पीड़िता को मुआवजा बढ़ाया।  



   - महत्व : यह मामला धारा 308 के लिए इरादे और ज्ञान की आवश्यकता को रेखांकित करता है और कम गंभीर अपराधों के लिए वैकल्पिक सजा की संभावना को दर्शाता है।







4. दिल्ली जिला न्यायालय (2017)


   - मामला : अभियुक्त पर धारा 308 के तहत आरोप था, लेकिन अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य के माध्यम से अभियुक्त के अपराध को साबित करने में विफल रहा।  


   - निर्णय : कोर्ट ने कहा कि धारा 308 के लिए निम्नलिखित सिद्ध करना आवश्यक है:  


     ⚡कार्य गैर-इरादतन हत्या के इरादे या ज्ञान के साथ किया गया हो।  


     ⚡ यदि कार्य से मृत्यु होती, तो यह गैर-इरादतन हत्या होता।  

     अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।  



   -  महत्व : यह मामला अभियोजन पक्ष पर स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।




 धारा 308 के तत्व 




- इरादा/ज्ञान : अभियुक्त को यह जानना चाहिए कि उसका कार्य मृत्यु का कारण बन सकता है, लेकिन हत्या का इरादा नहीं होना चाहिए।  


- कार्य की प्रकृति : कार्य ऐसा होना चाहिए कि यदि वह पूरा होता, तो गैर-इरादतन हत्या (धारा 304) होती, न कि हत्या (धारा 302)।  


- सजा : बिना चोट के 3 वर्ष तक की कैद या जुर्माना, या दोनों; चोट के साथ 7 वर्ष तक की कैद या जुर्माना, या दोनों।  



- साक्ष्य का बोझ : अभियोजन पक्ष को इरादे और परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से साबित करना होगा।