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BNSS की धारा 351 (पूर्व में धारा 313 CrPC)





1. धारा 313 CrPC के मुख्य प्रावधान:


धारा 313 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत न्यायालय को यह अधिकार प्रदान करती है कि वह किसी भी आपराधिक मामले में अभियुक्त (Accused) से स्वयं प्रश्न पूछकर उसका पक्ष सुने, ताकि अभियुक्त को यह अवसर मिले कि वह अपने खिलाफ प्रस्तुत साक्ष्यों पर स्पष्टीकरण दे सके।


इस धारा के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:


1. न्यायालय का अधिकार:

🪄यदि अभियोजन (Prosecution) के साक्ष्यों से अभियुक्त के विरुद्ध मामला बनता है, तो न्यायालय उसे व्यक्तिगत रूप से बुलाकर प्रश्न पूछ सकता है।


🪄यह अभियुक्त को आत्म-पक्ष रखने का अवसर देता है।




2. गवाहों की अनुपस्थिति में अभियुक्त से पूछताछ:

🪄अभियुक्त से प्रश्न पूछते समय अभियोजन पक्ष के गवाह या अन्य कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं होता।


🪄अभियुक्त अपने उत्तर बिना किसी डर या दबाव के दे सकता है।




3. अभियुक्त पर प्रभाव:

🪄यदि अभियुक्त अपने उत्तर में कोई नया तथ्य प्रस्तुत करता है, तो न्यायालय उसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर सकता है।


🪄अभियुक्त के उत्तर को साक्ष्य के रूप में नहीं लिया जाता, परंतु यदि वह कोई झूठी बात कहता है, तो इससे उसके विरुद्ध निष्कर्ष निकाला जा सकता है।




4. मौन (Silence) का प्रभाव:


🪄यदि अभियुक्त प्रश्नों का उत्तर नहीं देता या चुप रहता है, तो न्यायालय इसे अभियुक्त के विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने के लिए आधार बना सकता है।


हालांकि, अभियुक्त को खुद को दोषी ठहराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।




5. मौलिक अधिकारों का संरक्षण:


यह प्रावधान अनुच्छेद 20(3) के तहत दिए गए मौलिक अधिकार को प्रभावित नहीं करता, जिसमें किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

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2. न्यायिक मीमांसा (Judicial Interpretation):


न्यायालयों ने धारा 313 CrPC की व्याख्या करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं:


1. बसीर अहमद बनाम राज्य (1977):


🪄सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त को यह अधिकार है कि वह अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों पर सफाई दे और यह न्याय का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।




2. संजय दत्त बनाम सीबीआई (1994):


🪄न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अभियुक्त का उत्तर एक महत्वपूर्ण प्रमाण हो सकता है, लेकिन केवल उसी आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।




3. नरेंद्र सिंह बनाम राज्य (2004):


🪄इस मामले में न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा दिए गए उत्तरों को अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए और केवल उत्तर के आधार पर कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए।


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निष्कर्ष:

📢संवाद का माध्यम: यह प्रावधान न्यायालय और अभियुक्त के बीच संवाद स्थापित करने का साधन है, जिससे अभियुक्त के दृष्टिकोण को समझा जा सके।


📢पूर्वाग्रह से बचाव: यदि अभियुक्त को उसके विरुद्ध साक्ष्यों पर प्रतिक्रिया देने का अवसर नहीं दिया जाता, तो यह न्यायिक प्रक्रिया में पूर्वाग्रह उत्पन्न कर सकता है।


📢साक्ष्यों का समुचित मूल्यांकन: अभियुक्त के उत्तरों को अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए; केवल अभियुक्त के उत्तरों के आधार पर दोषसिद्धि उचित नहीं है।


धारा 313 CrPC न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अवसर देता है। यह न्यायालय को अभियुक्त के दृष्टिकोण को समझने और मामले में निष्पक्ष निर्णय लेने में सहायता करता है। इस धारा के तहत अभियुक्त को यह स्वतंत्रता मिलती है कि वह अपनी बात बिना किसी दबाव के रख सके, जिससे न्याय की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष बनी रहती है।