सुप्रीम कोर्ट ने State of Haryana v. Bhajan Lal, 1992 Supp (1) SCC 335 के ऐतिहासिक फैसले में 7 Grounds निर्धारित किए हैं, जिनमें कोर्ट FIR को रद्द (quash) कर सकती है, ताकि निर्दोष व्यक्ति को बेवजह फंसाया न जाए और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।
FIR रद्द करने की 7 आधार ग्राउंड (Bhajan Lal Guidelines):
1. कोई अपराध बनता ही नहीं (No Offence Disclosed)
अगर FIR में दर्ज तथ्यों को पूर्ण रूप से मान भी लिया जाए, तो भी कोई आपराधिक अपराध बनता ही नहीं।
उदाहरण:
केवल पैसे नहीं लौटाने को “धोखाधड़ी” कह देना — बिना आपराधिक मंशा के।
2. FIR में कथन असत्य या काल्पनिक हों (FIR is Absurd or Inherently Improbable)
दर्ज बातें इतनी असंभव या अविश्वसनीय हों कि उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
3. स्पष्ट रूप से सिविल विवाद हो (Civil Dispute Given Criminal Color)
कोई मामला पूरी तरह सिविल प्रकृति का हो, लेकिन उसे आपराधिक रूप देने का प्रयास किया गया हो।
उदाहरण:
ऋण नहीं चुकाने पर IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी) लगाना।
4. कानूनी बाधा हो (Legal Bar)
कानून या पूर्व आदेश के तहत ऐसा कोई प्रतिबंध हो जिससे जांच या मुकदमा कानूनी रूप से चल ही नहीं सकता।
उदाहरण:
पूर्व में समझौता हो चुका है या कोर्ट ने पहले ही रोक लगा दी हो।
5. जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण शिकायत (Malicious Prosecution)
जब शिकायतकर्ता ने दुर्भावना या प्रतिशोध की भावना से झूठी FIR दर्ज कराई हो।
6. कोई साक्ष्य न हो, केवल आरोप हों (No Evidence, Only Allegations)
जब FIR में कोई भी ठोस सबूत या तथ्यों का आधार न हो, सिर्फ भावनात्मक या सामान्य आरोप हों।
7. न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग (Abuse of Process of Law)
जब प्राथमिकी या मुकदमा केवल मानसिक दबाव बनाने, प्रतिशोध लेने या उत्पीड़न के लिए किया गया हो।