"अगर गवाह नहीं, तो क्या अपराधी छूट जाएगा? "
नहीं! सुप्रीम कोर्ट के 5 सिद्धांत बताते हैं कि केवल ‘परिस्थितियाँ’ भी अपराध साबित कर सकती हैं – अगर वो जुड़ी हुई हों, मजबूत हों और संदेह से परे हों।"
परिस्थितिजन्य साक्ष्य क्या है? (What is Circumstantial Evidence?)
परिस्थितिजन्य साक्ष्य ऐसे साक्ष्य होते हैं जो अपराध को प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखाते, लेकिन ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत करते हैं जिनसे अपराध का संकेत या निष्कर्ष निकलता है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) को वैध और भरोसेमंद मानने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केस Sharad Birdhichand Sarda v. State of Maharashtra (1984) में 5 महत्वपूर्ण सिद्धांत (Five Golden Principles) निर्धारित किए हैं, जिन्हें “Panch Sutra” भी कहा जाता है:
परिस्थितिजन्य साक्ष्य के 5 सिद्धांत – Supreme Court द्वारा:
1. सभी परिस्थितियाँ पूरी तरह से स्थापित होनी चाहिए।
केवल संदेह या अनुमान के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस प्रमाणों से हर कड़ी को साबित करना ज़रूरी है।
2. परिस्थितियाँ केवल एक ही निष्कर्ष की ओर इशारा करें – कि अपराध आरोपी ने ही किया है।
अगर कोई दूसरी संभावित व्याख्या हो सकती है, तो आरोपी को लाभ मिलेगा।
3. सभी परिस्थितियाँ एक-दूसरे से इस तरह जुड़ी हों कि एक पूर्ण कहानी प्रस्तुत करें।
कोई भी “कड़ी” कमजोर या टूटी नहीं होनी चाहिए।
4. परिस्थितियाँ इतनी मजबूत हों कि आरोपी के दोष के अलावा कोई दूसरा निष्कर्ष संभव न हो।
यानी संदेह से परे (Beyond Reasonable Doubt) दोष साबित हो।
5. सभी परिस्थितियाँ एक साथ मिलकर ऐसा तर्कसंगत और सुनिश्चित निष्कर्ष प्रस्तुत करें कि आरोपी ही दोषी है।
> केवल संदेह या अनुमान पर्याप्त नहीं है।
न्यायालय का दृष्टिकोण:
अगर ये 5 सिद्धांत पूरे नहीं होते, तो परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर आरोपी को सजा नहीं दी जा सकती।